Wednesday, March 24, 2010

आईपीएल का जादू


एक बार फिर आईपीएल मैच शुरू हो चुके हैं और पूरा भारत ही क्या लगभग सारे क्रिकेट प्रेमी देश इसके रंग में रंग चुके हैं । मैच के पहले ही दिन से आईपीएल ने बड़ी संख्या में दर्शक बटोरने शुरू कर दिए थे । आईपीएल का जादू सब के सर चढ़ कर बोल रहा है , क्या बच्चे क्या बूढ़े ...... सभी क्रिकेट के इस शो को देखने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। दर्शकों के इसी रूचि का फायदा सारे टीवी चैंनेल और रेडियो स्टेशन उठा रहे हैं । रोज़ नए-नए कांटेस्ट दर्शकों को और इनकी तरफ आकर्षित कर रहा है। शायद यही कारण है कि आईपीएल के चीफ ललित मोदी साहब ने साल में दो बार आईपीएल कराने का प्रस्ताव तक दे दिया , लेकिन क्या यह उचित प्रस्ताव है ', शायद नहीं!! प्रत्यक्ष रूप में न सही लेकिन क्रिकेट का नया प्रारूप आईपीएल मैच , (जो कि अब भारत जैसे देश में गली गली में खेला जाता है ) सामान्य जीवन को भी प्रभावित कर रहा है ,वो चाहे स्टुडेंट्स कि पढाई हो या फिर कोई और काम !!!
यहाँ तक कि आईपीएल मैच के इस मौसम में लोग इतने व्यस्त हो गये कि दूसरे खेलों में मिली सफलता पर ध्यान ही नहीं दिया या दिया भी तो कुछ खास नहीं !! इसी बीच कामनवेल्थ गेम्स में बाक्सिंग में भारत ने सात गोल्ड मेडल जीते , जो कि आज तक कभी नहीं हुआ था , मगर किसी ने इस उपलब्धि पर कुछ कहना महत्वपूर्ण नहीं समझा और शायद इन्ही में से कुछ लोग थे जिन्होंने भारत सरकार को काफी अच्छी सलाह दी थी बाक्सिंग के उत्थान के लिए कुछ करने को (ओलंपिक के समय)। यहाँ तक कि "साइएना नेहवाल" पूरे विश्व में बैडमिन्टन की ५वे नंबर कि खिलाडी बनी, जो कि काफी बड़ी उपलब्धि है, लेकिन फिर भी किसी ने कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और ना ही प्रोत्साहित करना जरुरी समझा।
शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के सभी वर्ग के लोग आईपीएल देखना पसंद करते हैं और पूरा समय देते हैं,लेकिन इसके साथ ये भी जरुरी है कि वो सभी चीज़ों को वैसा ही महत्त्व दे। सही ही है भारत में पूरे मन से या तो राजनीति होती है या एक्टिंग या फिर क्रिकेट!!!!!!!!!!!!!!

Saturday, March 20, 2010

भारतीय राजनीति में महिलाओ की स्थिति


बीते बीस सालों से महिला आरक्षण को ले कर चल रही बहस,तमाम मुद्दे , आखिरकार आधे-अधूरे परिणाम पर आकर ख़त्म हुआ। आधा-अधूरा इसलिए क्यूंकि राज्यसभा ने तो यह बिल पास किया ,लेकिन लोकसभा के "महान सदस्यों " ने तो पहले से ही विपरीत खड़े होने के संकेत दे दिए हैं । भारत जैसे देश में सबसे बड़ी विडंबना यही है कि किसी भी नए मत को स्वीकार करने में सालों लग जाते हैं और जब वो सर्वसम्मति से पास होता है , तो भारत अन्य देशों कि अपेक्षा उतने ही साल पीछे नजर आता है (जैसा कि महिला आरक्षण बिल के केस में है ) ।
कई विकसित और विकासशील देश ऐसे हैं जहाँ महिलाओ ने राजनीति में अपनी अलग पैठ बनायीं है (कनाडा, जर्मनी , इंडोनेसिया यह तक कि बंगलादेश में भी महिलाओ के लिए उचित सीटों का निर्धारण किया गया है)।लेकिन भारत में महिलाओ कि राजनीति में भागीदारी , राज्यसभा में ११.३३% और लोकसभा में ७.६% है ।
हैरानी तो तब होती है ,जब महिलाएं ही महिलाओ का साथ नै देती हैं । इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ ।वैसे ये कोई नयी बात नहीं है, क्यूंकि अगर आपको याद हो तो , सीपीऍम केरल कि प्रसिद्द "गोवारी अम्मा " कि उनके खुद के पार्टी सदस्यों के द्वारा हुई बेज्जती के बावजूद किसी भी महिला कार्यकर्ता ने आवाज़ उठाने कि कोशिश नहीं की। "जयललिता " के साथ हुए अभद्र व्यवहार (जब उनकी साड़ी फट गयी थी) के बाद भी किसी महिला कार्यकर्ता ने आपत्ति नहीं जताई। बीजेपी की पूर्व कार्यकर्ता "उमा भारती " को भी मीडिया ने बड़े ही अच्छे नाम से नवाजा "सेक्सी सन्यासिन" और एक बार फिर सभी ने नजरंदाज किया।
सवाल उठता है, क्यूँ ? और सीधा सा जवाब है , राजनीति में पुरुषों का आधिपत्य। जहाँ किसी भी महिला को अपना स्थान बनाने में सालों गुजर जाते हैं और अब जब ये स्थान उन्हें महिला आरक्षण बिल के रूप में मिल रहा है, तो दिल खोल कर स्वागत करने की जगह विरोध के स्वर सुनाई दे रहे थे और तोड़- फोड़ तो अपने देखा ही होगा । ये प्रयास कितना सफल हो पायेगा , ये तो लोकसभा के फैसले के बाद ही दिखाई पड़ेगा। मगर तब तक के लिए रह जाती हैं ढेरों आशंकाएं और आशाएं महिला शशक्तिकरण को ले कर...........................................

Wednesday, March 17, 2010

"रिक्शे भरोसे युवा महान"


मैंने अक्सर देखा है, की भारत की "युवा पीढ़ी " थोड़ी- थोड़ी दूर के लिए दूसरे इंसान पर निर्भर होती है ।
मै बात कर रही हू , आरामपसंद युवाओं की, जिनको भारत का भविष्य कहा जाता है । अक्सर ये युवा १/२ किलो मी. की दूरी को रिक्शे से तय करना पसंद करते हैं और पैदल चलते लोगों को देख कर काफी गर्व महसूस करते हैं । लेकिन सोचने वाली बात यह है , की जो युवा पीढ़ी खुद के बोझ को नहीं उठा सकती , वो इस देश की जिम्मेदारी को क्या निभाएंगे ?
रिक्शे वाले जो कि इन युवाओ को उनकी मंजिल तक पहुंचाते हैं , उनसे ये रोड पर खड़े हो कर २ रुपये के लिए झगडा कर अपना समय बर्बाद कर देते हैं और कुछ तो ४० रुपये कि गोली तक !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
लेकिन यही रुतबे वाले लोग बड़े बड़े मॉल में २०० रुपये कि जगह ४०० रुपये दे कर आते हैं और कुछ भी नहीं बोल पाते हैं.
सोचने वाली बात ये है कि , क्या यही भविष्य है हिन्दुस्तान का ??????????????
रिक्शे वालों के भरोसे घूमते युवा , जिनको खुद के पैरों पर भरोसा नहीं या अपने से कमजोर लोगों पर गुस्सा निकालते युवा या फिर कुछ और !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!