Wednesday, September 15, 2010

" मायने attitude के "


बीते हफ्ते से ही हमारे पत्रकारिता विभाग में चहल - पहल काफी बढ़ गई है , कुछ नए तो कुछ पुराने चेहरे फिर से हमारे विभाग को गुलज़ार कर रहे हैं मगर ये चहल पहल कब तक रहने वाली है यह कहना अभी से ही मुश्किल लग रहा है.........
अब मै यह इसलिए कह रही हूँ क्यूकि उन गायब होने वालो से एक नाम तो मेरा ही है , तो भाई जैसे सावन के अंधे को सब हरा ही दिखता है वैसे ही मुझे भी लग रहा है कि मै नहीं जा रही तो कोई भी नहीं जा रहा होगा........ खैर ये तो हुई मेरी बात कि मै कितने गर्व से ना जाने कि बात स्वीकार कर रही हूँ....... इसे आप मेरा attitude भी कह सकते हैं दरअसल attitude कि बात मै इसलिए कर रही हूँ , क्यूकि बीते हफ्ते जब मैंने क्लास में अपने कदम रखे तो बात रुकी हुई थी attitude पर ...और मेरे होनहार सहपाठी लगे हुए थे अपने विचार प्रस्तुत करने में....... कुछ देर तो मैंने उनकी बात बहुत ध्यान से सुनी , उन्होंने सबके सामने अच्छी बाते रखी जो कि थोड़ी आदर्शवादी भी थी और मुझ जैसे साधारण सोच वाली लडकी के लिए बहुत ऊंची बस इसीलिए थोड़ी ही देर बाद मै "ATTITUDE" नामक शब्द को अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जोड़ने लग गयी जिसमे कि थोडा तो यथार्थ हो
सोचते हुए मुझे बीता हुआ सेमेस्टर याद गया जिसमे हमारे मन में खुद के लिए बहुत ज्यादा नकारात्मक attitude भरा हुआ था और वो भी कि हमारे क्लास की संख्या को ले कर हमारे जितने भी गुरुजन आते एक ही नजर में पूरे क्लास की संख्या गिन जाते जो कि बहुत मुश्किल से से निकलती और कभी कभी तो कमाल ही हो जाता था जब आने वालो कि संख्या रह जाती थी - , फिर जब उनकी नजर हम पर पड़ती तो लगता था कि कहीं छुप जाएँ वरना कम लोगों के आने के अपराध में कहीं हमें "तिहाड़ जेल " ना भेज दिया जाए इसके बाद हमारी क्लास की इस उपलब्धि के लिए कुछ छोटे-छोटे और दिल को छु जाने वाले वाक्य बोले जाते थे, और फिर हमारी नकारात्मक सोच में थोड़ी सी और बढ़ोत्तरी हो जाती थी , बस इसी नकारात्मक attitude के साथ हमारे दो सेमेस्टर बीत गए
पर इस सेमेस्टर कि शुरुआत में ही ये नकारात्मक attitude सकारात्मक attitude में बदल गया..... अब अगर आपको लग रहा हो की हमारी क्लास की संख्या में कुछ अंतर आया तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है......... बस हमारी सोच में थोडा अंतर हो गया वो भी इसी attitude की क्लास के दौरान वो भी की तब जब हमारे "विभाग के नैया के खेवैय्या " ने एक बात कही कि शायद हमारी क्लास कुछ ज्यादा ही होनहार है , जिन्होंने कि कोर्से के पूरे होने के पहले ही अपने रास्ते बना लिए ......
अब और किसी को कोई फर्क पड़ा हो या नहीं लेकिन मै कुछ ज्यादा ही खुश हो गयी और अपने सोच के दायरे को बढ़ा कर जो कुछ कहना चाहती थी लोगो के बीच में वो भी भूल गयी पर हाँ संतुष्टि एक बात कि हुई कि और कुछ मिला मिला पर एक सोच मिली , कुछ करने का और आगे बढ़ने का रास्ता तो मिला वो भी एक " सकारात्मक attitude " के साथ अब मेरी यह सोच ही तो मेरा सकरात्न्मक attitude है...... क्या कहते हैं आप.........