Sunday, July 25, 2010

"नटखट प्राणी जिनसे हुई हैरानी..."


"कभी चुपके से कानों में कुछ कह जाते ये.......... कभी अनजाना स्पर्श दे जाते ये .......... कभी अपने नटखट कामों से , अपनी मौजूदगी का एहसास कराते ये ........... और कभी कभी हॉस्पिटल भी पहुंचाते ये ........!!!!!!!!!"
अरे मै किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रही .... जी हाँ मै बात कर रही हूँ , उन छोटे - छोटे मच्छरों की जो बहुत बड़े -बड़े काम करते हैं अब आप अगर सोच रहे हैं , कि मुझे इनकी याद क्यूँ आई ??
तो मै अब वही बताने जा रही हूँ
अब करूँ क्या , बीती रात इन्होने ऐसा गीत गुनगुनाया और खुद का पेट भरा है , कि मुझे उनका गीत अभी तक याद है , अब बोल क्या थे ये तो मै नहीं बता सकती पर भाव तो मै समझ गयी थी लग रहा था मानो यही गा रहे हों ............
" भीगे पंख मेरे , प्यासे डंक मेरे ......... लगे अमृत सा मुझे खून तेरा ............. कभी मेरे साथ कोई रात गुज़ार .....तुझे सुबह तक मै कर दू लाल.........कर दूँ बीमार ... वो ओहो .............."
अब इनके इस भयावह गान के बाद तो निद्रा माता मुझे इनके पास अकेला छोड़ कर कोसों दूर भाग गयीं और बार - बार बुलाने पर भी नहीं आईं............ तो बस मैंने भी ठान ली कि इनकी प्रशंसा में दो - चार वाक्य तो ज़रूर लिखूंगी
कभी - कभी तो लगता है कि भगवन ने इंसानों को बनाया तो बनाया , लेकिन इन मच्छरों को क्यूँ बनाया ...????? फिर समझ में आया , भाई कुछ आरामपसंद लोगों के आराम को हराम करने के लिए कुछ माध्यम तो होना ही चाहिए , तो बना दिया होगा भगवन ने इन मच्छरों को............
फिर एक बात और आई दिमाग में , कि आखिर हम लोग इतनी मेहनत से मन लगा कर अपने घर के आस - पास या फिर कहिये , पूरे मोहल्ले में या फिर कहिये तो पूरे शहर में गन्दगी फैलाते हैं ,तो कोई तो हो जो हमें इस मेहनत का फल दे .......हमें हमारी मेहनत का उपहार दे....., तो बस इसी का एक सर्वोत्तम माध्यम बना दिया हमारे परम पिता परमेश्वर ने जिसका नाम है .........मच्छर .....!!!!!
और फिर से हमें एक बार पुण्य काम करने का मौका दिया , मतलब कि " रक्तदान" का ......
बस यही काम मैंने कल किया और आज गयी यहाँ गुणगान करने ........
तो अगर आपको भी यह पुण्य काम करना है , तो...... "गन्दगी फैलाओ , मच्छर बचाओ " और उसके बाद करो "रक्तदान ".......

Thursday, July 15, 2010

" निर्दोष पुलिस"

कभी - कभी मेरे दिल में ख्याल आता है ........... अरे मैं गानों की बात नहीं करने जा रही हूँ, बस मन में एक बात आई, तो आपको बताने आ गई।


इन गर्मियों के अलसाए दिनों में एक्साम ख़त्म होने के बाद कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाये, तो एक ख्याल आया । इन्टर्नशिप के लिए पेपर देने का। अब ख्याल तो बहुत अच्छा था, पहुँच गए पेपर देने। अब उस पेपर में एक प्रश्न को पढ़ कर एक नहीं बहुत सारे ख्याल आये और बस कुछ ख्याल पेपर में लिखे और कुछ यहाँ लिखने के लिए आ गई।

अब प्रश्न यह था की पुलिस ने एक दोषी को छोड़कर निर्दोष को गिरफ्तार करती है , आप पुलिस की भूमिका के बारे में क्या कहना चाहेंगे ? पहले तो मुझे गजब की हंसी आई, कि पुलिस की भूमिका......!!!!!!!!!! बेचारों को भूमिका निभाने का मौका ही कब मिलता है ???? रियल लाइफ में कुछ "ओहदे वाले" लोग नहीं निभाने देते और रील लाइफ में फिल्म निर्माता .....!!!!

अब पुलिस के बारे में मुझे जितना कुछ पता चला है, मतलब उनके " स्पेशल फीचर" के बारे में , फिल्मों की मेहरबानी है । जैसे ---

-> "कानून अँधा होता है ", आँखों का वर्णन

-> "कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं ", हाथों की प्रशंसा

-> कभी - कभी तो पेट की गहराई तक नाप लेते हैं यह लोग ........

और तो और , उनकी भावनाओ को व्यक्त करने के लिए " टोपी " दी गयी है , टोपी उतरे तो समझ लीजिये " आ गया दुःख का मौका ".... , स्पेशल आवाज़ करती पुलिस की जीप .....

अब आप सोचिये इतना कुछ दिया गया है पुलिस को फिर भी वो देर में क्यूँ पहुंचती है ॥???

मैंने बहुत कुछ सोचा , फिर दो बातें मेरे सामने आई - पहली तो यह , पुलिस के पैर के बारे में तो कभी बात ही नहीं हुई , हाथ लम्बे हुए तो क्या हुआ पैर तो हैं ही नहीं , तो समय पर पहुंचे भी तो कैसे !!!!!!

-> और दूसरी ये की चलो पैर छोड़ो " दिमाग " की बात तो भूल से भी कभी नहीं होती , उसे टोपी से कवर कर "सेफ मोड" पर रख दिया जाता है , जो स्वतंत्र भी कब होता है , दुःख के मौके पर .........!!!!!

अब बेचारी पुलिस करे भी तो क्या ॥??? इन सब बातों को सोच कर तो मुझे यही लगा की बेचारी पुलिस पर फ़ालतू के दोष लगाए जाते हैं , जब दो महत्वपूर्ण अंग हैं ही नहीं उनके पास , तो उनका दोष ही क्या है .....!!!

तो भाई मेरी अदालत में तो पुलिस निर्दोष है और अब यह है "आपकी अदालत" में और करना है आपको " सच का सामना "....!!!! क्यूंकि अब पुलिस तो ये कहने से रही , " जो कहूँगा सच कहूँगा "......