Sunday, October 31, 2010

" "जोर का झटका "


"जोर का झटका हाय ज़ोरों से लगा ...." आजकल ये गीत सभी की जुबान पर छाया हुआ है।
पर कल तो इस गाने का निरूपण ही मेरी जिंदगी में हो गया और जोर का झटका ज़ोरों से ही लगा..... बहुत दिनों बाद या फिर सच्चे मन से कहू तो पहली बार जिंदगी की सच्चाई को इस रूप में देखा । सब कुछ पता होने के बावजूद भी एक धक्का सा लगा , क्या ये हमारा " भारत " है......!!!!!!!!! वही हिन्दुस्तान है जिसकी एकता और समानता पर हम गर्व करते हैं , जहां स्त्रियों की पूजा करने की बाते की जाती हैं........ भले ही आज ऐसा ना हो ( खैर ये तो कहने की बात है ) मगर हमारा इतिहास तो वही है , जलता हुआ और मजहबी खून से सना हुआ ......
इन सब बातों को करने की वजह भी मै बताती चलूँ , कल हमारे विभाग में सामूहिक रूप से एक documentary फिल्म दिखाई गई जिसका नाम था " SOn , father and holy war " ( director - आनंदजी )। नाम सुनकर तो लगा कि कुछ तो खास है इसमें लेकिन देखने के बाद लगा कि इस फिल्म ने तो हमारे काले इतिहास का आइना ही दिखा दिया........ और समानता कि बात करने वाले लोगों के चेहरे पर पड़े नकाब को हटा दिया। थैंक्स मुकुल सर .... जिन्होंने ये फिल्म हमें दिखाई।
आज तक हम जिस उन्नत भारत के २५ वर्षों ( १९८५ से अब तक ) कि गिनती गिनते आ रहे थे , उन वर्षों कि असलियत जब निकल कर सामने आ गई तो एक बार को दिल-ओ-दिमाग हिल सा गया। एक तरफ सती-प्रथा को बढ़ावा , विधवा विवाह पर रोक, मजहबी लड़ाई , जहां इंसान ही इंसान को मारने और मरवाने पर लगा हुआ है और सबसे बड़ी बात नारियों को पूजे जाने वाले देश में " नारियों कि औकात " को दिखाती इस फिल्म ने बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया........ पर जैसा कि हमारे सर कहते हैं की सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होगा, तो ये वक़्त है कुछ करने का क्युकी इन सब मजहबी और दकियानूसी विचार धारा के कीड़े ना तो कभी मरते हैं और ना ही सोते हैं बल्कि हमारी नीव को खोखला कर एक ही धक्के में गिराने कि साजिश करते रहते हैं.........
अब तो बस यही प्रार्थना है इश्वर से कि कल के मिले इस झटके से उबारने कि जगह उस धक्के कि वजह को ख़तम करने का दृढ साहस हम सभी को दे, जिससे आगे हम दिशा में कुछ कर सकें.... ताकि आने वाली पीढ़ी को कम से कम अपना इतिहास देख कर शर्मिंदगी ना महसूस हो ................................

Friday, October 15, 2010

काश ऐसा होता.....!!!!!!


जाने अनजाने कभी कभी जिंदगी हमें ऐसी राह पर खड़ा कर देती है , जहां हम ये भी नहीं सोच पाते की हमें आगे बढ़ना है या कुछ पल का ठहराव लेना है । वैसे तो जिंदगी चलने का ही नाम है । समय , रेत और पानी की तरह हाथ से निकलता ही जाता है , जिसे चाहकर भी कोई अपनी मुट्ठी में कैद नहीं कर पता और बस जो इस समय की गतिके साथ आपने को ढाल लेता है, वही बिना किसी स्पीड ब्रेकर के आगे बढ़ता जाता है ।
इसी तेज़ रफ़्तार जिंदगी में अक्सर कुछ ऐसी गलतियाँ भी जुडती जाती हैं , जिन्हें शायद हम अपनी जिंदगी से कभी अलग नहीं कर पाते................. यही सोचते हुए मन में एक ख्याल आया कि काश कंप्यूटर सिस्टम की तरह हमारी जिंदगी में भी " अन्डू " का विकल्प होता...... जिससे हम अपनी जिंदगी के उन पलों को मिटा सकते , जिन्हें हम कभी याद नहीं करना चाहते ......... रिवर्स और फॉरवर्ड के विकल्प तो होने ही थे कि जब ये सुपरफास्ट जिंदगी हमे बहुत बोर करने लगे तो हम इसे फॉरवर्ड कर आगे बढ़ सकते और जब उन मीठेपलों की जिन्हें हम फिर से जीना चाहते हैं याद आये तो रिवर्स करके उनकी एक झलक पा सकते............. और कम -से- कम इस दौड़ती भागती जिंदगी में थोडा सा ठहराव लाने के लिए पॉज विकल्प की व्यवस्था होनी ही थी...... हाँशायद कट, कॉपी , पेस्ट और एडिट के विकल्प तो जिंदगी में रंग ही भर जाते , मगर... फिर वही कि काश ऐसा होता
अरे हाँ एक्सिट और न्यू के दो महत्वपूर्ण विकल्प के तो कहने ही क्या....., इसे तो पृथ्वी के समझदार प्राणियों ने सबसे अच्छे तरीके से सीखा है। कंप्यूटर सिस्टम कि तरह ही असल जिंदगी में ये दो विकल्प सबसे आसान हैं, क्यूकि यहाँ भी जब जिसका मन हुआ किसी को अवतरित किया और जिसका मन भर गया वो I QUIT " कह इस दुनिया से एक्सिट हो लिया....!!
और अगर आप सोच रहे हैं कि मै कंप्यूटर के पीछे क्यों पड़ गयी हूँ तो सच तो यही है कि लोगोंकी आजकल कि जिंदगी में रिश्तों , खाने और पीने से ज्यादा कंप्यूटर का स्थान बनता जा रहा है और जब ये मशीन हमारी जिंदगी से इतना ज्यादा जुड़ रहा है तो क्यों ना हम अपनी जिंदगी को इससे जोड़ कर देखें.......
खैर ये तो मैंने अपने कल्पनाशीलता के पंख में थोडा "vibration" ला कर एक खुशनुमा जिंदगी की कल्पना कर डाली और लगे हाथों अपने कंप्यूटर ज्ञान का सूक्ष्म प्रदर्शन भी कर लिया ....मगर फिर भी मन मेंएक बात तो रह ही जाती है...... कि " काश ऐसा होता................"
.....!!!!!!! "

" अनजाने से रिश्ते "


बड़े अनजाने होते हैं ये रिश्ते ,
ख़ुशी और गम का पुलिंदा होते हैं ये रिश्ते,
कभी मिटटी के घरौंदे से ढह जाते हैं रिश्ते,
तो कभी आँखों पलकों सा साथ निभाते हैं ये रिश्ते,
आंसुओं में बिखरते ये रिश्ते.....
कलाईयों से निकलते लहू से बह जाते ये रिश्ते...
कभी दो बातों में बनते ये रिश्ते....
कभी बिन कुछ कहे टूट जाते ये रिश्ते.......
सितारों की लड़ी से ये रिश्ते........
जिंदगी की लय पर चलते घडी से ये रिश्ते..........
कभी मुस्कान देते...
कभी रुला देते ये रिश्ते...........
टूटते बनते , संभलते ये रिश्ते......
कोई न समझ पाया है इनकी कहानी.....
इसमें बसी मोहब्बत .......
इसमें बसी जुदाई.......
कभी लगते अनजाने.........
कभी लगते फ़रिश्ते.........
ऐसे अपरिभाषित होते हैं ये रिश्ते.............

Sunday, October 3, 2010

" तुझे सब है पता माँ "


कभी कभी लगता है अगर घर में हमारे "माँ " न हो तो कैसा हो ??? ये सोच कर ही दिल घबरा जाता है...... मगरजब किसी आपने खास के साथ ऐसा हो तो भी दिल बैठ सा जाता है । आज ये कविता मै ऐसे ही आपने एक खासमित्र के लिए लिख रही हू..................
कब्र की सी आगोश में जब थक कर के सो जाती है "माँ".....
तब कही जा कर थोडा सुकून पाती है "माँ "......
फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसे ही घुल जाती है "माँ "......
नौजवान होते हुए बूढी नजर आती है "माँ "........
रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये ....,
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है "माँ ".....
कब जरुरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर ....
जागती रहती है आँखें और सो जाती है "माँ ".....
घर से परदेश आता है कोई नूरे नजर ....,
हाथ में गीता को ले कर दर पे आ जाती है "माँ "
जब परेशानी में घिर जाते हैं हम परदेश में ...,
आसुओं को पोछने ख्वाबों में आ जाती है "माँ "..................
चाहे हम खुशियों में "माँ " को भूल जाएँ दोस्तों .....
जब मुसीबत सर पे आ जाये तो याद आती है "माँ "
लौट कर सफ़र से वापस जब कभी आते हैं हम ....
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है "माँ "...
हो नहीं सकता कभी एहसान उसका ही अदा...
मरते- मरते ही दुआ जीने को दे जाती है "माँ "
मरते दम बच्चा न आ पाए अगर परदेश से........
अपनी दोनों पुतलियों को चौखट पर रख जाती है "माँ "....................


Wednesday, September 15, 2010

" मायने attitude के "


बीते हफ्ते से ही हमारे पत्रकारिता विभाग में चहल - पहल काफी बढ़ गई है , कुछ नए तो कुछ पुराने चेहरे फिर से हमारे विभाग को गुलज़ार कर रहे हैं मगर ये चहल पहल कब तक रहने वाली है यह कहना अभी से ही मुश्किल लग रहा है.........
अब मै यह इसलिए कह रही हूँ क्यूकि उन गायब होने वालो से एक नाम तो मेरा ही है , तो भाई जैसे सावन के अंधे को सब हरा ही दिखता है वैसे ही मुझे भी लग रहा है कि मै नहीं जा रही तो कोई भी नहीं जा रहा होगा........ खैर ये तो हुई मेरी बात कि मै कितने गर्व से ना जाने कि बात स्वीकार कर रही हूँ....... इसे आप मेरा attitude भी कह सकते हैं दरअसल attitude कि बात मै इसलिए कर रही हूँ , क्यूकि बीते हफ्ते जब मैंने क्लास में अपने कदम रखे तो बात रुकी हुई थी attitude पर ...और मेरे होनहार सहपाठी लगे हुए थे अपने विचार प्रस्तुत करने में....... कुछ देर तो मैंने उनकी बात बहुत ध्यान से सुनी , उन्होंने सबके सामने अच्छी बाते रखी जो कि थोड़ी आदर्शवादी भी थी और मुझ जैसे साधारण सोच वाली लडकी के लिए बहुत ऊंची बस इसीलिए थोड़ी ही देर बाद मै "ATTITUDE" नामक शब्द को अपने रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जोड़ने लग गयी जिसमे कि थोडा तो यथार्थ हो
सोचते हुए मुझे बीता हुआ सेमेस्टर याद गया जिसमे हमारे मन में खुद के लिए बहुत ज्यादा नकारात्मक attitude भरा हुआ था और वो भी कि हमारे क्लास की संख्या को ले कर हमारे जितने भी गुरुजन आते एक ही नजर में पूरे क्लास की संख्या गिन जाते जो कि बहुत मुश्किल से से निकलती और कभी कभी तो कमाल ही हो जाता था जब आने वालो कि संख्या रह जाती थी - , फिर जब उनकी नजर हम पर पड़ती तो लगता था कि कहीं छुप जाएँ वरना कम लोगों के आने के अपराध में कहीं हमें "तिहाड़ जेल " ना भेज दिया जाए इसके बाद हमारी क्लास की इस उपलब्धि के लिए कुछ छोटे-छोटे और दिल को छु जाने वाले वाक्य बोले जाते थे, और फिर हमारी नकारात्मक सोच में थोड़ी सी और बढ़ोत्तरी हो जाती थी , बस इसी नकारात्मक attitude के साथ हमारे दो सेमेस्टर बीत गए
पर इस सेमेस्टर कि शुरुआत में ही ये नकारात्मक attitude सकारात्मक attitude में बदल गया..... अब अगर आपको लग रहा हो की हमारी क्लास की संख्या में कुछ अंतर आया तो ऐसा बिलकुल भी नहीं है......... बस हमारी सोच में थोडा अंतर हो गया वो भी इसी attitude की क्लास के दौरान वो भी की तब जब हमारे "विभाग के नैया के खेवैय्या " ने एक बात कही कि शायद हमारी क्लास कुछ ज्यादा ही होनहार है , जिन्होंने कि कोर्से के पूरे होने के पहले ही अपने रास्ते बना लिए ......
अब और किसी को कोई फर्क पड़ा हो या नहीं लेकिन मै कुछ ज्यादा ही खुश हो गयी और अपने सोच के दायरे को बढ़ा कर जो कुछ कहना चाहती थी लोगो के बीच में वो भी भूल गयी पर हाँ संतुष्टि एक बात कि हुई कि और कुछ मिला मिला पर एक सोच मिली , कुछ करने का और आगे बढ़ने का रास्ता तो मिला वो भी एक " सकारात्मक attitude " के साथ अब मेरी यह सोच ही तो मेरा सकरात्न्मक attitude है...... क्या कहते हैं आप.........

Sunday, July 25, 2010

"नटखट प्राणी जिनसे हुई हैरानी..."


"कभी चुपके से कानों में कुछ कह जाते ये.......... कभी अनजाना स्पर्श दे जाते ये .......... कभी अपने नटखट कामों से , अपनी मौजूदगी का एहसास कराते ये ........... और कभी कभी हॉस्पिटल भी पहुंचाते ये ........!!!!!!!!!"
अरे मै किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं कर रही .... जी हाँ मै बात कर रही हूँ , उन छोटे - छोटे मच्छरों की जो बहुत बड़े -बड़े काम करते हैं अब आप अगर सोच रहे हैं , कि मुझे इनकी याद क्यूँ आई ??
तो मै अब वही बताने जा रही हूँ
अब करूँ क्या , बीती रात इन्होने ऐसा गीत गुनगुनाया और खुद का पेट भरा है , कि मुझे उनका गीत अभी तक याद है , अब बोल क्या थे ये तो मै नहीं बता सकती पर भाव तो मै समझ गयी थी लग रहा था मानो यही गा रहे हों ............
" भीगे पंख मेरे , प्यासे डंक मेरे ......... लगे अमृत सा मुझे खून तेरा ............. कभी मेरे साथ कोई रात गुज़ार .....तुझे सुबह तक मै कर दू लाल.........कर दूँ बीमार ... वो ओहो .............."
अब इनके इस भयावह गान के बाद तो निद्रा माता मुझे इनके पास अकेला छोड़ कर कोसों दूर भाग गयीं और बार - बार बुलाने पर भी नहीं आईं............ तो बस मैंने भी ठान ली कि इनकी प्रशंसा में दो - चार वाक्य तो ज़रूर लिखूंगी
कभी - कभी तो लगता है कि भगवन ने इंसानों को बनाया तो बनाया , लेकिन इन मच्छरों को क्यूँ बनाया ...????? फिर समझ में आया , भाई कुछ आरामपसंद लोगों के आराम को हराम करने के लिए कुछ माध्यम तो होना ही चाहिए , तो बना दिया होगा भगवन ने इन मच्छरों को............
फिर एक बात और आई दिमाग में , कि आखिर हम लोग इतनी मेहनत से मन लगा कर अपने घर के आस - पास या फिर कहिये , पूरे मोहल्ले में या फिर कहिये तो पूरे शहर में गन्दगी फैलाते हैं ,तो कोई तो हो जो हमें इस मेहनत का फल दे .......हमें हमारी मेहनत का उपहार दे....., तो बस इसी का एक सर्वोत्तम माध्यम बना दिया हमारे परम पिता परमेश्वर ने जिसका नाम है .........मच्छर .....!!!!!
और फिर से हमें एक बार पुण्य काम करने का मौका दिया , मतलब कि " रक्तदान" का ......
बस यही काम मैंने कल किया और आज गयी यहाँ गुणगान करने ........
तो अगर आपको भी यह पुण्य काम करना है , तो...... "गन्दगी फैलाओ , मच्छर बचाओ " और उसके बाद करो "रक्तदान ".......

Thursday, July 15, 2010

" निर्दोष पुलिस"

कभी - कभी मेरे दिल में ख्याल आता है ........... अरे मैं गानों की बात नहीं करने जा रही हूँ, बस मन में एक बात आई, तो आपको बताने आ गई।


इन गर्मियों के अलसाए दिनों में एक्साम ख़त्म होने के बाद कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाये, तो एक ख्याल आया । इन्टर्नशिप के लिए पेपर देने का। अब ख्याल तो बहुत अच्छा था, पहुँच गए पेपर देने। अब उस पेपर में एक प्रश्न को पढ़ कर एक नहीं बहुत सारे ख्याल आये और बस कुछ ख्याल पेपर में लिखे और कुछ यहाँ लिखने के लिए आ गई।

अब प्रश्न यह था की पुलिस ने एक दोषी को छोड़कर निर्दोष को गिरफ्तार करती है , आप पुलिस की भूमिका के बारे में क्या कहना चाहेंगे ? पहले तो मुझे गजब की हंसी आई, कि पुलिस की भूमिका......!!!!!!!!!! बेचारों को भूमिका निभाने का मौका ही कब मिलता है ???? रियल लाइफ में कुछ "ओहदे वाले" लोग नहीं निभाने देते और रील लाइफ में फिल्म निर्माता .....!!!!

अब पुलिस के बारे में मुझे जितना कुछ पता चला है, मतलब उनके " स्पेशल फीचर" के बारे में , फिल्मों की मेहरबानी है । जैसे ---

-> "कानून अँधा होता है ", आँखों का वर्णन

-> "कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं ", हाथों की प्रशंसा

-> कभी - कभी तो पेट की गहराई तक नाप लेते हैं यह लोग ........

और तो और , उनकी भावनाओ को व्यक्त करने के लिए " टोपी " दी गयी है , टोपी उतरे तो समझ लीजिये " आ गया दुःख का मौका ".... , स्पेशल आवाज़ करती पुलिस की जीप .....

अब आप सोचिये इतना कुछ दिया गया है पुलिस को फिर भी वो देर में क्यूँ पहुंचती है ॥???

मैंने बहुत कुछ सोचा , फिर दो बातें मेरे सामने आई - पहली तो यह , पुलिस के पैर के बारे में तो कभी बात ही नहीं हुई , हाथ लम्बे हुए तो क्या हुआ पैर तो हैं ही नहीं , तो समय पर पहुंचे भी तो कैसे !!!!!!

-> और दूसरी ये की चलो पैर छोड़ो " दिमाग " की बात तो भूल से भी कभी नहीं होती , उसे टोपी से कवर कर "सेफ मोड" पर रख दिया जाता है , जो स्वतंत्र भी कब होता है , दुःख के मौके पर .........!!!!!

अब बेचारी पुलिस करे भी तो क्या ॥??? इन सब बातों को सोच कर तो मुझे यही लगा की बेचारी पुलिस पर फ़ालतू के दोष लगाए जाते हैं , जब दो महत्वपूर्ण अंग हैं ही नहीं उनके पास , तो उनका दोष ही क्या है .....!!!

तो भाई मेरी अदालत में तो पुलिस निर्दोष है और अब यह है "आपकी अदालत" में और करना है आपको " सच का सामना "....!!!! क्यूंकि अब पुलिस तो ये कहने से रही , " जो कहूँगा सच कहूँगा "......

Wednesday, June 2, 2010

नैनो कि दुःख भरी जिंदगी


आज बहुत दिनों बाद मैंने रोड पर सभी करों की छोटी बहिन या कहूं तो बच्चे को देखा , अरे समझ तो गए ही होंगे आप की मै बात किसकी कर रही हूँ, जी हाँ अपनी प्यारी छोटी कार "टाटा नैनो"। मै तो बिलकुल डर ही गयी थी कि इस बेचारी का क्या होगा...!!!!! सही सलामत घर पहुँच जाये , यही प्रार्थना करते हुए आईअब शायद आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यू..........अगर आप लखनऊ के होंगे तो बहुत आसानी से समझ जायेंगे और अगर नहीं तो मै समझा देती हूँ....... माशाअल्लाह क्या कार चलते हैं यहाँ पर लोग, ऐसा लगता है कि हर किसी को किसी प्रोग्राम में चीफ गेस्ट बन कर पहुचना है, उफ़ !!! ये क्या कह दिया मैंने, चीफ गेस्ट कौन सा बहुत टाइम पर पहुँच जाते हैंलखनऊ कि रोड पर आपको बहुत अच्छी और महँगी कार मिल जाएगी देखने को...और कार चलाने वाले और कमाल केअब आज ही देखिये टवेरा, स्कॉर्पियो और पजेरो जैसी कार के बीच में हमारी सस्ती, सुन्दर और छोटी उम्र कि टाटा नैनो बहुत संघर्ष करती दिखाई दी, पहले तो इनकी बड़ी साइज़ से फिर इनके मालिकों की चलाने की तकनीक से मुझे तो बड़ी दया रही थी उसकी इस हालत पर.......... पर कुछ कर नहीं पाई मैलेकिन जब इसके जन्मदाता ही कुछ नहीं कर पाए इसके लिए तो मै भी क्या कर सकती हूँअब आज फिर से एक बार इसका घर बदल दिया गया और कुछ नहीं कर पाया कोईकभी सिंगूर कभी सानंद ............ कुछ स्थिरता ही नहीं दिखती इसकी जिंदगी में....... ना ही रोड पर और ना ही इसकी पर्सनल जिंदगी में मतलब की इसके निर्माण चेत्र में...... रोड पर लोग चलने नहीं देते और किसी एक जगह इसे बनने नहीं देतेबेचारी नैनो , क्या बुरी किस्मत पाई है....!!!!! मै भगवन से प्रार्थना करूंगी कि ये साल इसके लिए खुशियाँ लाये और इसे भी बिना किसी रूकावट के चलने और बनने दोनों का मौका मिले