Sunday, October 3, 2010
" तुझे सब है पता माँ "
कभी कभी लगता है अगर घर में हमारे "माँ " न हो तो कैसा हो ??? ये सोच कर ही दिल घबरा जाता है...... मगरजब किसी आपने खास के साथ ऐसा हो तो भी दिल बैठ सा जाता है । आज ये कविता मै ऐसे ही आपने एक खासमित्र के लिए लिख रही हू..................
कब्र की सी आगोश में जब थक कर के सो जाती है "माँ".....
तब कही जा कर थोडा सुकून पाती है "माँ "......
फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसे ही घुल जाती है "माँ "......
नौजवान होते हुए बूढी नजर आती है "माँ "........
रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये ....,
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है "माँ ".....
कब जरुरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर ....
जागती रहती है आँखें और सो जाती है "माँ ".....
घर से परदेश आता है कोई नूरे नजर ....,
हाथ में गीता को ले कर दर पे आ जाती है "माँ "
जब परेशानी में घिर जाते हैं हम परदेश में ...,
आसुओं को पोछने ख्वाबों में आ जाती है "माँ "..................
चाहे हम खुशियों में "माँ " को भूल जाएँ दोस्तों .....
जब मुसीबत सर पे आ जाये तो याद आती है "माँ "
लौट कर सफ़र से वापस जब कभी आते हैं हम ....
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है "माँ "...
हो नहीं सकता कभी एहसान उसका ही अदा...
मरते- मरते ही दुआ जीने को दे जाती है "माँ "
मरते दम बच्चा न आ पाए अगर परदेश से........
अपनी दोनों पुतलियों को चौखट पर रख जाती है "माँ "....................
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Man ko chhu gaye gaye aapke bhav.
ReplyDelete................
…ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
thanx sir..
ReplyDeletemaa toh maa hoti ..... kyonki iski barabari kisi se nahi ho sakti hai .....
ReplyDeleteItni Badiya Kavita ki aankh bhar aayi, shayad shabdon mein is kavita ki tarif karna iska apman hoga... Bahut umda kavita likhi hai aapne.
ReplyDeletewww.gunchaa.blogspot.com
Thanks manpreet fr appreciation
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